National Archives of India (NAI) "भारतीय शिक्षा और अभिलेख"
भारतीय शिक्षा और अभिलेख
भारत प्राचीन काल से ही शिक्षा का केन्द्र रहा है। प्राचीन काल में गुरुकुल या आश्रम ही शिक्षा के केन्द्र थे, शिक्षा नि:शुल्क थी और यह स्थानीय राजा अथवा समृद्ध लोगों के अनुदान से चलती थी। विद्यार्थियों के अभिभावक भी इसमें सहयोग करते थे। मध्यकाल में गुरुकुल, पाठशाला के साथ-साथ मकतब और मदरसा तथा पारसी टोल भी अस्तित्व में आए।
भारत में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का प्रवेश व्यावसायिक और राजनैतिक था, किन्तु उन्होंने माना कि शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करना आवश्यक था। 1781 में कलकत्ता मदरसा की स्थापना अंग्रेजो द्वारा शिक्षा की ओर पहला कदम था, 1793 में बनारस में संस्कृत विद्यालय तथा सन् 1800 में फोर्ट विल्यम कालेज कलकत्ता की स्थापना हुई।
1813 के चार्टर एक्ट में सर्वप्रथम भारतीयों की शिक्षा के लिए एक लाख रुपये वार्षिक का प्रावधान किया गया जो बहुत ही मामूली था। तत्पश्चात् अगले महत्वपूर्ण कदम में गवर्नर जनरल काउंसिल ने 1823 में एक समिति (General Committee of Public instruction) गठित की इस समिति में 9 सदस्य थे, जे. पी. लारंकिस, डब्लयू. बी. मारटीन, डब्लयू. बी. वैली, एस. शैक्सपीयर, एच. मैकेन्जी, एच. जे. प्रिंसेप, जे. सी. सदरलैण्ड, ए. स्टरलिंग व एच. एच. विल्सन, और इसे शिक्षा के सुधार और एक लाख रूपये शिक्षा पर खर्च करने के लिए नामित किया गया।
इसके पश्चात देश में प्राच्य और पाश्चात्य का विवाद प्रारंभ हो गया, जिसमें एक वर्ग भारतीय भाषाओं के माध्यम से तथा दूसरा वर्ग अँग्रेज़ी के माध्यम से शिक्षा देने के पक्ष में था। इसका पटाक्षेप मैकाले के मिनट (1835) से हो गया जिसमें अँग्रेज़ी को ही शिक्षा का माध्यम मान लिया गया।
सन् 1847 में थाँमसन कालेज (जो आगे चलकर आई आई टी रूडकी बना) की स्थापना हुई। सन् 1854 में वुडस डिस्पैच, जिसे भारतीय शिक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है, के माध्यम से लंदन विश्वविद्यालय के आधार पर विश्वविद्यालयी शिक्षा का प्रस्ताव आया और आगे चलकर यही बम्बई, कलकत्ता, मद्रास प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय का आधार बना। 1857 में प्रेसीडेसी विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए कानून (Act) पास हुआ। इसके पश्चात अन्य विश्वविद्यालय, इलाहाबाद, पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना का अधिनियम बना जिन्हे डिग्री देने की शक्ति दी गई। इन विश्वविद्यालयों की स्थापना में देश के अनेक गणमान्य लोगों ने आर्थिक सहयोग प्रदान किया। इस अवधि में शिक्षा का विस्तार दिखाई देता है और साथ ही महिला एवं अन्य वर्गों की शिक्षा के लिए प्रावधान किए गए।
20 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में शिक्षा का और विस्तार हुआ 1901 में शिक्षा के विकास के लिए शिमला में 15 दिन के सम्मेलन का आयोजन हुआ था, इसके पश्चात कर्जन शिक्षा नीति को भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम के नाम से 1904 में पारित किया गया। इसी अवधि में भारतीय शिक्षाविदों ने भी गम्भीर प्रयास किया गोपाल कृष्ण गोखले ने प्राथमिक शिक्षा को नि:शुल्क एवं अनिवार्य बनाने के लिए 1910 में प्रस्ताव रखा जो 1911 में प्राथमिक शिक्षा के बिल के रूप में पास हो गया। इसके पश्चात मदन मोहन मालवीय बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय तथा सर सैय्यद अहमद ख़ाँ ने अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की।
1947 में देश की आजादी के बाद शिक्षा के समग्र विकास के लिए प्रत्येक स्तर पर गम्भीर प्रयास हुए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना हुई जिसका प्रथम अध्यक्ष शान्ति स्वरूप भटनागर को बनाया गया। विभिन्न विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए बिल पास हुए। नई शिक्षा नीति पर गम्भीर चर्चा प्रारम्भ हुई तथा इस अवधि में अनेक विज्ञान, तकनीकी एवं चिकित्सा शिक्षण संस्थानों जैसे भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science), भारतीय तकनीकी संस्थानों (Indian Institute of Technology), अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (AIIMS) तथा भारत के स्कूलों की सबसे बड़ी चेन सरस्वती शिशु मन्दिर, केंद्रीय विद्यालय, सैनिक स्कूल, वायु सेना स्कूल, नवोदय विद्यालय स्थापित हुए वस्तुत: शासकीय और निजी संस्थानों द्वारा शिक्षा के लिए समेकित प्रयास दिखाई देते है। वर्तमान समय में विस्तृत चर्चा के पश्चात नई शिक्षा नीति का लागू होना एवम् हाल ही में माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के गौरव को पुन: स्थापित करना महत्वपूर्ण कदम है। इस प्रदर्शनी में प्राचीन गौरव के साथ साथ शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयासों की झलक मिलती है।