National Archives of India (NAI) "भारत भारतीय: स्वदेश परदेस"
भारत भारतीय: स्वदेश परदेस
प्रवास मनुष्य का स्वभाव है। भारतीय समाज ने विभिन्न देशों में सदैव प्रवास किया है। कभी इसका कारण सुखद तो कभी कष्टप्रद रहा है, विशेषकर औपनिवेशिक काल में हुआ प्रवास पीड़ादाई रहा जब भारतीय मज़दूरों को अफ्रीकी, दक्षिण पूर्व एशियाई एवं अन्य देशों में ले जाया गया। किसी भी परिस्थिति में गये भारतीय परिवारों ने अपने कौशल एवं ज्ञान से विश्व में अमिट छाप छोड़ी है।
महात्मा गांधी 9 जनवरी 1915 को अफ्रीका से भारत लौटे और तभी से यह दिन प्रत्येक वर्ष ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। 2003 से प्रारम्भ हुई यह परम्परा अनवरत जारी है। इस वर्ष 18वें प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन भुवनेश्वर में हो रहा है।
इस अवसर पर राष्ट्रीय अभिलेखागार ‘भारत-भारतीय: स्वदेश-परदेस’ विषय पर एक प्रदर्शनी का आयोजन कर रहा है। यह प्रदर्शनी मूल दस्तावेजों, छाया चित्रों, दुर्लभ पाण्डुलिपियों एवं हाल ही में प्राप्त हुए ओमान में रह रहे प्रवासी भारतीयों के निजी दस्तावेजों पर आधारित है।
भारत में अँग्रेजों के आगमन के पश्चात भारतीय लोगों का विदेशों में जाना अत्यधिक बढ़ गया जिसकी वजह थी ब्रिटिश उपनिवेशों में भारतीय मज़दूरों की मांग। इसी को देखते हुए अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कानून बने एवं सुधारों के लिए अनेक संगठन बनने भी प्रारंभ हुए। फ्री लेबर एसोसिएसन भी इसी समय अस्तित्व में आया। भारत में भी प्रवासी भारतीयों के कल्याण के लिए अनेक सुधारात्मक कानून बने और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। इनमें 1883 एवं 1983 के प्रवासी विधान एवं 2024 में प्रवासी भारतीयों के कल्याण के लिए लाया गया विधेयक उल्लेखनीय है।
20वीं शताब्दी में भारतीय प्रवासियों का न केवल आवागमन बढ़ा, बल्कि उन्होने अपने पैर विदेशी धरती पर स्थाई रूप से जमाना भी आरंभ कर दिया। इण्डिया ऑफिस पत्र व्यवहार एवं कीनिया, सूरीनाम, ट्रिनिडाड व ट्बोगो आदि देशों में भारतीयों से सम्बधित रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती हैं।
महात्मा गांधी एक ऐसे प्रवासी थे जिन्होने स्वयं एक प्रवासी के रूप में प्रवासी भारतीयों के दर्द को समझा और उनके हक की लड़ाई लड़ी। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में एशियाई लोगों के विरोध में बनाए गये कानूनों के खिलाफ आंदोलन भी किए।
भारत और ओमान के सम्बंध सदियों पुराने रहे है। व्यापार हेतु अनेक लोग गुजरात, विशेषकर कच्छ से, ओमान गये और वहां की संस्कृति में रच बस गये। इन प्रवासियों ने ओमान की आर्थिक समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खिमजी रामदास, रतनसी पुरूषोत्तम, नरनजी हीरजी, लाखों परिवार, नारायनदास प्रागजी तोपरानी, विजयसिंह पुरूषोत्तम तोपरानी, धानजी मोरारजी, रतनसी गोरधानदास, चिमनलाल छोटालाल सुरती, धर्मसी नैनसी, एबजी सुन्दरदास एसर, महेश हरिदयास तोपरानी, हरषेन्दु हंसमुख शाह, जमुनादास केशवजी, जयन्तीलाल वाडेर, बाबूलाल कानौजिया, खताउ रतनसी तोपरानी खूबू गुरनानी, मगनलाल मानजी व्यास, मेघजी नैनसी, आन्जी हरिदास, मोहनलाल अर्जुन पवाई, भुगतलाल पाण्डया परिवार, पुरूषोत्तम दामोदर, नगरदास मांजी शाह, वेलजी अर्जुन पवानी, विसामुल दामोदर जैसे परिवारों का ओमान के विकास में विशेष योगदान रहा है।
भारत भारतीय: स्वदेश परदेस शीर्षक से आयोजित यह प्रदर्शनी विश्व में भारतीयों के इतिहास, उनकी क्षमता एवं उनके योगदान को दिखाने का एक प्रयास है।